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सूरज की गवाही

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आधी रात का वक़्त था। हर जगह सनाटा था। अचानक किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी।  राजा राय दिसल रिआया के सुख दुःख को जान-ने के लिए रात के सनाटे में भेस बदल कर घूम रहे थे। जहाँ से आवाज़ आ रही थी। उन के कदम उसी तरफ बढे। जा कर देखते हैं के एक सुनसान चौराहे पर एक आदमी बैठा रो रहा है।  ''क्या बात है ? रोते क्यू हो ?'' राजा राय दिसल ने पूछा। ''क्या बताऊँ ? इस दुन्या में दीन ईमान नाम की कोई चीज़ रही ही नहीं। कहो किस को बताऊँ।'' उस आदमी ने कहा।  ''तो तुम राजा राय दिसल के पास क्यू नहीं जाते ?'' राजा राय दिसल ने कहा। ''कैसे जाऊं ? सिपाही मुझे बाहर से ही भगा देंगे।'' ''नहीं भगाएँगे। लो यह अंगूठी ले लो। कल राय दिसल के सामने जा कर अपने दिल की सारि परेशानियां बता देना। ''येह कह कर उस आदमी को अंगूठी पकड़ा दी। अगले दिन वह आदमी अंगूठी दिखा कर राजा के दरबार में आ पोहंचा और अपनी तकलीफ बताने लगा। ''बापू !मैं एक किसान हूँ। मैं ने नगर सेठ से एक हज़ार कोड्यां /rupees उधार ली थीं। सूद समेत मैं सरे पैसे /कोड्यां वापस कर चूका हु। लेकिन...