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Showing posts from August, 2020

hazrat muhammad sallallahu alaihi wasallam

  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम को गुसुल हज़रत अली कर्म अल्लाह वज़ह ने दिया था।  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम की नमाज़े जनाज़ा किसी भी शक्श/आदमी ने नहीं पढाई।  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम  की तद्फीन के लिए हज़रत अबू-तलाह अंसारी [राज़ी अल्लाह ताला अन्हा] ने कब्र अतहर तैयार की।  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम को इंजील में फार कलेत/فارقلیط  के नाम से याद किया गया है।  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम की सब से बड़ी नवासी का नाम امامہ بنت ابو العاص /इमामा बिन्ते अबू-अलआस था।  फारिस का आतिश कदाह / فارس کا آتش کدہ ,जो एक हज़ार साल से जल रहा था।  हुज़ूर अक़दस  सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम की विलादत/वफ़ात से बुझ गया। 

hajj ki fazilat

  नबी करीम सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम ने फ़रमाया जिस ने अल्लाह के लिए हज किया और गुनाह ना किए ,वह ऐसा वापस होगा जैसे इस की माँ ने आज ही इस को जन्म दिया है।  आप सल्लाहु-अल्लेह-वसल्लम ने ये भी इरशाद फ़रमाया के नेकी से भरे हुए हज का बदला जन्त के सिवा  कुछ नहीं। [मश्कूत शरीफ] नेकी से भरा हुआ हज वोह है जो शोहरत और शेखी के लिए ना किया जाए बल्के सिर्फ अल्लाह ताला की राजा मंदी के लिए हो और इस में गुनाहों से परहेज़ /कोई गुनाह ना हो और लड़ाई झगड़ा ना हो। 

story of acharya kripalani / j.b.kripalani

अंग्रेज़ों के ज़माने मुज़फर नगर के सरकारी कोल्लेगे /collage के प्रिंसिपल /principle को एक तार /letter मिला ,'' मैं चम्पारन जा रहा हूँ ,रास्ते में तुम्हारे यहाँ आऊंगा '' यह तार /letter महात्मा गाँधी की तरफ से जिस सरकारी  कोल्लेगे /collage के प्रिंसिपल /principle को आया था उन का नाम था प्रिंसिपल /principle j.b kripalani जो  बाद में ''आचार्य क्रिपालानि ''के नाम से मशहूर /famous हुए। इस वक़्त बिहार के चम्पारन में रहने वाले गरीब किसानो और अमीर जमीन मालिकों के बिच ज़बर्दस्त आन्दोलन चल रहा था। गरीब किसानो का कोई मदद करने वाला नहीं था, क्यू के अमीर जमीन मालिकों को ब्रिटिश सर्कार की मदद हासिल थी। गाँधी जी इस आन्दोलन में किसानों के हक में आवाज़ उठाने के लिए आने वाले थे। किसी सरकारी कोल्लगे  /collage के  प्रिंसिपल /principle के घर  ब्रिटिश  सर्कार के कटर दुश्मन गाँधी जी की आमद एक अजीब बात थी। जैसे ही यह ख़बर  कोल्लेगे /collage के स्टाफ /कर्मचारी में फैली ढ़र के मरे कई लोग वहां से भाग गए के कही उन का नाम सर्कार के दुश्मनो की list / फेहरिस्त में न आ जाए लेकिन  आचार्य क्रिपाल

QUR'AN

क़ुरान मजीद अल्लाह की वह मुकदस किताब है जो आखरी पैगम्बर/नबी ''हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम '' पर नाज़िल की गई। पूरा क़ुरान शरीफ रामज़ा-नुल मुबारक की लायलत-अल-क़द्र में अल्लाह की तरफ से आसमानी दुन्या पर एक-बारगी नाज़िल हुआ। यह मुकदस किताब इंजील के 360 /तीन सो साठ साल या पांच सो/500 साल बाद नाज़िल हुई। फिर पूरा क़ुरान तैतीस [23] साल में थोड़ा थोड़ा नाज़िल किया गया। सब से पहली सूरेह अलक़ की शुरवाती आयात नाज़िल हुई। क़ुरान मजीद में 83/ सूरतें हिजरत से पहले और 31/ सूरतें हिजरत के बाद में नाज़िल हुई। मदीना शरीफ में जो सूरतें नाज़िल हुई इन को ''मदनी ''केहते हैं और जो मक्का में नाज़िल हुई इन को ''मक्की केहते हैं। क़ुरान पाक में कई अम्बियाए-कराम के नाम, 12 फरिश्तों के नाम, एक इस्लामी महीने का नाम और एक सहाबी-ए रसूल का नाम भी आया है।   

QUR'AN

  It is a divine scripture from allah [exalted is he!] which was revealed to the final prophet sayyiduna muhammad [prayers and peace be upon him ]. the entire quran was revealed from the preserved tabled to the worldly sky on the night of laylat-al-qadr at once. it was revealed 360 years or 500 years after the revelation of the injil [gospel]. the entire quran was revealed during a period of 23 years.the first verses to be revealed were the initial verses of the chapter 'al-'alaq'. the number of chapter to be revealed before migration is 83 and those after migration is 31. the chapters revealed in madinah are known as 'madani' and those revealed in makkah are known as 'makki'. the holy quran mentions the name of several prophets, angels, name of an islamic month, name of a companion of the holy prophet [prayers and peace be upon him ].

सूरज की गवाही

आधी रात का वक़्त था। हर जगह सनाटा था। अचानक किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी।  राजा राय दिसल रिआया के सुख दुःख को जान-ने के लिए रात के सनाटे में भेस बदल कर घूम रहे थे। जहाँ से आवाज़ आ रही थी। उन के कदम उसी तरफ बढे। जा कर देखते हैं के एक सुनसान चौराहे पर एक आदमी बैठा रो रहा है।  ''क्या बात है ? रोते क्यू हो ?'' राजा राय दिसल ने पूछा। ''क्या बताऊँ ? इस दुन्या में दीन ईमान नाम की कोई चीज़ रही ही नहीं। कहो किस को बताऊँ।'' उस आदमी ने कहा।  ''तो तुम राजा राय दिसल के पास क्यू नहीं जाते ?'' राजा राय दिसल ने कहा। ''कैसे जाऊं ? सिपाही मुझे बाहर से ही भगा देंगे।'' ''नहीं भगाएँगे। लो यह अंगूठी ले लो। कल राय दिसल के सामने जा कर अपने दिल की सारि परेशानियां बता देना। ''येह कह कर उस आदमी को अंगूठी पकड़ा दी। अगले दिन वह आदमी अंगूठी दिखा कर राजा के दरबार में आ पोहंचा और अपनी तकलीफ बताने लगा। ''बापू !मैं एक किसान हूँ। मैं ने नगर सेठ से एक हज़ार कोड्यां /rupees उधार ली थीं। सूद समेत मैं सरे पैसे /कोड्यां वापस कर चूका हु। लेकिन

Lal bahadur shastri

लाल बहादुर शास्त्री हिंदुस्तान के दूसरे वज़ीरे आज़म /PRIME MINISTER थे आज़ादी के बाद 1951 में वह पंडित जवाहर लाल नेहरू के वक्त में कांग्रेस पार्टी /PARTY के जनरल सेक्रटरी रहे। उन्हों ने 1952 ,1957 और 1962 के इलेक्शन में कांग्रेस पार्टी की भरी वोटों से जीत के लेया काफी मेहनत की। जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद शास्त्री जी ने 9/ जून 1964 को वज़ीरे आज़म / PRIME MINISTER की कुर्सी संभाली।  लाल बहादुर शास्त्री का जनम 2 /अक्टूबर 1904 को UP [उत्तर प्रदेश ]के शेहर मुग़ल सराए में हुआ। उन के पिताजी का नाम मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव और माँ का नाम राम दुलारी था। उन के पिताजी पेशे से उस्ताद /teacher थे इस लिए लोग उन्हें मुंशी जी कहते थे। शास्त्री जी घर में सब से छोटे थे इस लिए घर के सब लोग प्यार से उन्हें 'नन्हें 'केह कर बुलाते थे। जब उन की उम्र 18 महीने थी तब ही उन के पिताजी चल बसे। पिताजी के जाने के बाद उन की माँ अपने मइके चली आइ। कुछ दिनों बाद उन के नाना भी चल बसे। लाल बहादुर शास्त्री की परवरिश और उन की तालीम में उन के खालू ''रघु नाथ प्रसाद '' ने उन की काफी मदद की। लाल बहादुर

INJIL [Gospel]

इंजील अल्लाह की वोह मुकदस किताब है जो हज़रत इसा अलेह-सलाम पर नाज़िल गई। ये इब्रानी ज़बान में नाज़िल हुई । इंजील 18 रमजान को नाज़िल हुई। ये किताब ज़बूर के  1050/एक हज़ार पचास साल बाद नाज़िल हुई ,ये जबल-ए-सौर पर नाज़िल हुई। इंजील शरीफ में ऐसी बोहत सी आयात हैं जो हमारे प्यारे नबी के बारे में बताती है, ईसाईयों ने इस किताब में बोहत तहरीफ़ें /changes किए है। हज़रत इसा अलेह-सलाम की पैदाइश /birth place बेतलेहेम bethlehem थी, जो बैतूल-मुकदस / jerusalem  से 8 मिल दूर पर एक बस्ती है। आप /हज़रत इसा अलेह-सलाम और हज़रत मूसा अलेह-सलाम के बिच चार हज़ार/4000 पैगम्बर /नबी गुज़रे और सब के सब हज़रत मूसा अलेह-सलाम की शरीयत के मुहाफ़िज़ /रखवाले थे और उन के अहकाम /आदेश पुरे करने वाले थे।  

INJIL [Gospel]

It is a divine scripture from allah [exalted is he! ] which was revealed to sayyiduna 'isa [peace be upon him ]. it was revealed on the 18th of ramadan. it was revealed 1050 years after the revelation of the zabur [psalms]. it has many verses prophesying sayyiduna muhammad [prayers and peace be upon him ]and describing his characteristics. it has undergone extreme tampering at the hands of the christians. sayyiduna 'isa [peace be upon him ] was born in bethlehem. it is situated at a distance of 8 miles from the holy land in jerusalem. there have been 4000 prophets between the time of sayyiduna musa and  sayyiduna 'isa [peace be upon them]. each one of them was a guardian and preacher of the law of sayyiduna musa [peace be upon him ]. from the famous miracles of sayyiduna 'isa [peace be upon him ] is giving life to birds of clay.  

ZABUR [Psalms]

  ज़बूर अल्लाह तबारक-व-ताला की वोह मुकदस किताब है जो हज़रत दावूद अलेह-सलाम पर नाज़िल की गई। येह मुकदस किताब रमज़ान शरीफ की बारह/12 या अठरा/18 तारिक को नाज़िल हुई। येह अबरानी ज़बान में नाज़िल की गई थी। येह आसमानी किताब तौरेत के बाद नाज़िल हुई। इस में एक सो पचास/150  सूरतें थीं, सब में दुआ, अल्लाह तबारक-व-ताला की हम्द, उस की तारीफ और अल्लाह तबारक-व-ताला के हुकुम थे। इस आसमानी किताब की सब से बड़ी और लम्बी सूरेह क़ुरान पाक की चैथाई के बराबर थी और सब से छोटी सूरेह क़ुरान पाक की ''सूरह-तूं-नसर '' के बराबर थी। हज़रत दावूद अलेह-सलाम ज़बूर शरीफ को सत्तर/70 आवाज़ों में तिलावत फरमाते /read किया करते थे। हज़रत दावूद अलेह-सलाम हज़रत मूसा अलेह-सलाम से पांच सो उनासी [579] साल बाद और हमारे आका हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सलल्लाह-हु-अलेह-व-सलम से एक हज़ार आठ सो [1800] साल पेहले तशरीफ़ लाए 

ZABUR [Psalms]

It is a divine scripture from allah [exalted is he!] which was revealed to sayyiduna dawud [peace be upon him ].it was revealed on the 12th or 18th date of the month of ramadan. it was revealed in the aramaic language. there were 150 chapters in it which contained supplication to allah,his praise, and exaltation. its longest chapter was equal to a fourth of the quran and its shortest chapter was equal to the chapter 'al-nasr' of the quran. sayyiduna dawud [peace be upon him ] used to recite it in 70 different styles. sayyiduna dawud [peace be upon him ] lived 589 years before sayyiduna musa [peace be upon him ] and 1800 years before sayyiduna muhammad [prayers and peace be upon him ].  

TAWRAT [torah]

तौरेत अल्लाह तबारक-व-ताला की वोह मुकादस किताब जो हज़रत मूसा अलेह सलाम नाज़िल हुई। यह सिरयानी ज़बान में थी। यह आस्मानी किताब 10 /धु अल-हिज्जह नाज़िल हुई। इस किताब के तख्तियां /पन्ने /सफे /pages ज़बरजद [एक कीमती पत्थर ]की थीं। इस में एक हज़ार /1000  सूरतें और हर सूरत में एक हज़ार /1000 आयत थीं। तौरेतके के कुल साथ /7 हिस्से थे। जिस की लम्बाई 10 गज़ थी,इस को ले कर जब हज़रत मूसा अलेह सलाम अपनी कौम की तरफ तशरीफ़ लाए तो कुछ लोगों के जो हज़रत हारून अलेह सलाम के साथ थे उन के अलावह पूरी कौमे-बनी इसराइल को शिर्क /किसी और की पूजा करते हुए पाया। अपनी कौम की येह हरकत/शिर्क देख कर आप बोहत परेशान /रंजीदा हुए आप गुसे में अपने भाई हारून अलेह सलाम की तरफ गए इस दौरान  तौरेत  शरीफ के  तख्तियां / पन्ने /सफे /pages आप के हाँथ से गिर गईं। इस के गिर जाने की वजा से अल्लाह तबारक-व-ताला ने तौरेत छे /6  हिसों को उठा लिया, बाकि एक हिसा जिस में सिर्फ ज़रूरी मसाएल थे बनी इसराइल को मिले। तौरेत का हर जस एक साल में पड़ा जाता था। जिस को सिर्फ हज़रत मूसा अलेह सलाम, हज़रत उज़ैर, हज़रत इसा अलेह सलाम के अलावा कोई पड़ न सका।   

TAWRAT [torah]

It is divine scripture from allah [exalted is he !] which was revealed to sayyiduna musa [peace be upon him ].it was in the syriac language .it was revealed on th 10th of dhu al-hijjah .the slates on which it was written were made out of peridot .it had 1000 chapters and each chapter comprised of 1000 verses .it had 7 part in total and its length was 10 cubits . when sayyiduna musa [peace be upon him ] came to his people carrying the tawrat/torah,he found them, except a few, to be involved in polytheism. he felt distressed due to this act of theirs. during this incident, when he was going towards sayyiduna harun [peace be upon him ], the slates of the tawrat/torah fell down. allah [exalted is he !] then took back 6 aprts of the tawrat/torah. the children of israel obtained only the remaining parts which had necessary rulings in it. every part of tawrat/torah used to be recited in the duration of a year. it was recited in this duration by none except sayyiduna musa, sayyiduna 'uzayr

LIFE AND CAMERA

  Life is like a camera sp you should always smile :-] at every moment  kya pata kab kaun apki tasveer apne dil me utarle  

RELATIONSHIP

  Relationship between tow persons is like the relationship between the hand and the eyes if the hands get hurt the eyes cries and if the eyes cries the hand wipes its tears ...!

ISLAMI KNOWLEGE

जब ज़कर्या अलेह-सलाम ने औलाद /बच्चे के लिए दुआ की थी तब उन की उम्र 80 साल थी और जब दुआ कुबूल हुई तो उन की उम्र 120 साल थी।  दो नबियों ने शादि नहीं की एक ''हज़रत ईसा अलेह-सलाम'' और दूसरे ''याहिया अलेह-सलाम। दुन्या और आख़िरत में सब से अफ़ज़ल/नेक 5 औरतें है  हज़रत फातिमा राज़ी-अल्लाह ताला अन्हा हज़रत खतीजा राज़ी-अल्लाह ताला अन्हा हज़रत आइशा राज़ी-अल्लाह ताला अन्हा हज़रत आसिया राज़ी-अल्लाह ताला अन्हा और हज़रत मरियम अलेह-सलाम  हज़रत ईसा अलेह-सलाम ने जब कलाम /बात की थी उस वक्त आप की उम्र 3 या 5 दिन थी। 

FARISHTE

  फरिश्तों को भी अल्लाह-ताला ने पैदा किया है ,वह Normally /आम  तोर पे दिखाई नहीं देते। वह ना मर्द हैं और ना औरत। वह कोई गुनाह/बुरा काम नहीं करते। अल्लाह ने उन को जिन काम के लिए कहा है वोह सिर्फ उसी काम को ठीक ठीक तरहा से करते है। फ़रिश्ते बोहत हैं जिन की सही गिन्ती अल्लाह के सिवा किसी को नहीं मालूम।  इन में से यह फ़रिश्ते बड़े हैं  ''हज़रत जिब्राइल अलेह सलाम '' जो अल्लाह ताला एहकाम /बातें और किताबें नबियों तक लाते थे।  ''हज़रत इसराफिल अलेह सलाम '' जो क़यामत के दिन सुर फूकेंगे /आवाज़ देंगे।  ''हज़रत मिकाइल अलेह सलाम'' जो मिना /बारिश बरसाने और बन्दों /लोगों को उन का रिज़्क़ पोहचाने का काम पूरा करते है।  ''हज़रत इज़राइल अलेह सलाम'' जो बन्दों/लोगों की जान निकाल्ने का काम करते है।  मुनकिर नाकिर जो कब्र में सवाल करेंगे  करामन कातेबीन जो इंसान के अच्छे और बुरे काम लिखने पर मुकर्रर/फ़ाएज़ हैं।  हर मुस्लमान को तमाम फरिश्तों पर भी ईमान लाना चाहिए। 

SHAYARI

کہیں بھی نہی ہے مثال-اے محمّد  ''جملے خدا ہے جملے محمّد '' نظر میں مدینے کا ہے سبز گمبد  میرے دل کی راحتلی خیال -اے محمّد  مدینے کی پیاری اذان-بلالی  مثال -اے موہبت ،بلال-اے محمّد   कहीं भी नहीं है मिसाल-ए मोहम्मद ''जमाल-ए खुदा है जमाल-ए मोहम्मद ''  नज़र में मदीने का है सब्ज़ गुम्बद   मेरे दिल राहत    ख्या ल-ए मोहम्मद   मोहम्मद प्यारी अज़ान-ए बिलाली  मिसाल-ए मोहम्मद ,बिलाल-ए मोहम्मद [सब्ज़ =हरा /GREEN]

Jokes for entertainment

एक लड़का जूस की बोतल सामने रख कर उदास बैठा था।  उस का दोस्त आया और पूरा जूस उठा कर पि गया और पूछा ''यार तू उदास क्यूं बैठा है ?'' दोस्त बोलै :यार आज का दिन ही मन्हुस है।  सुबह घर में बीवी से झगड़ा हुआ ,रस्ते में गाड़ी ख़राब हो गई। इस लेया ऑफिस /OFFICE देर से पोहंचा तो बॉस /BOSS ने नौकरी से निकाल दिया  अब खुद-ख़ुशी करने के लिए जूस में ज़ेहर मिलाया था वोह भी तू पि गया।   

NABI KI SADGI PART 2

  इसी तरह प्यारे नबी गधे की सवारी भी किया करते थे जब-के उस ज़माने में ऊंट और घोड़े भी थे जो अमीर और बड़े लोगों के पास होते थे और आप ने इन की भी सवारी की है लेकिन आप की सादगी/simplicity गधे की सवारी में ही थी। आप बिना तकलीफ गधे की सवारी किया करते थे। यह आप की सादगी की एक अलामत /निशानी है। आज अगर कोई पैदल चले या साइकल /cycle पर चले तो लोगों की नज़र में वह ''बेचारा ''बन जाता है। लोग अंदाज़ा लगते है की बेचारा गरीब है। लोगों की नज़र में चीज़ों की नुमाइश /display करने वाले इज़त-दार होते है। और सादगी /simplicity अपनाने वाले बेचारे या फिर गरीब होते है। जिन के पास है उन्हें चाहिए की अगर ज़रूरत हो तो car या bike का इस्तेमाल करें लेकिन जहाँ ज़रूरत न हो वहां सादगी/simplicity को इस्तेमाल करना चाहिए मतलब पैदल या फिर ट्रैन जैसी चीज़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। आदमी को ज़मीं पर भी कदम रखना चाहिए ता के घमंड का इलाज भी होता रहे। इसी तरहा आप गुलामों की दावत भी कुबूल करते थे। उस ज़माने में गुलामों को छोटा और निचा समझा जाता था। आप उन की इज़त बढ़ाने के लिए और ऊँच निचे का बेध-भाव ख़तम करने के लिए उन की दावत कु

PYARE NABI KI SADGI/SIMPLICITY PART 1

  हज़रात अनस इब्ने मालिक र . अ फरमाते है के रसूल अल्लाह [सलाह-अलैहे-वसलम ]बीमारों से हमेशा मिलते थे ,जनाज़े में शरीक होते थे ,गधे पर सवारी करते थे और गुलामों की दावत कुबूल करते थे। पैगम्बर/नबी का  मक़ाम खुदा के बाद है दुन्या की बुलंद-तरीन शख्सियत /PERSONALITY होने के बावजू नबी करीम एक आम आदमी की तरह रहते थे। नबी करीम दिखावे की ज़िंदगी से बिलकुल दूर रहते थे और इस का साबुत आप अपने अमाल से दिया करते थे। चुनांचा आप बीमारों से मुलाकात करते और उन को तसल्ली दिया करते थे के आप अच्छे हो जाएंगे उन की सेहत-याबी की दुआ करते थे इस से मरीज़ को अच्छा महसूस होता था। आज यह चीज़ ख़तम हो गई है। दिखावे ने ऐसा घेर रखा है के रिश्तेदारी और तालुकात के क्या हुकूक हैं इन पर अमल करने का वकत ही नहीं है आज के लोगों के पास। जहाँ अपना फाएदा हो वहां हर कोई खड़ा होता है। जहाँ फ़ायदा ना हो वहां कोई भी नबी की सुनत पर अमल नहीं करता।  इसी तरह आप जनाज़े में भी शामिल हुआ करते थे। मरने वाला छोटा हो या बड़ा ,अमीर हो या गरीब आप जनाज़े में ज़रूर शामिल होते थे। आज यह सुनत भी ख़तम होती जा रही है। आप ने बार-बार जनाज़े में और कब्रिस्तान जाने को क

SACHI HAKIKAT

  ज़िंदगी अल्लाह की तरफ से दी हुई एक अज़ीम नेमत है।अगर ज़िंदगी है तो मौत भी बरहक़ /CONFORM है। ज़िंदगी और मौत के फेसले अल्लाह तलाह के सिवा कोई नहीं कर सकता।  दुन्या और आख़िरत की हर चीज़ पर वह कादिर है। इंसान की ज़िंदगी की शुरुआत /STARTING एक ना-पाक पानी के कतरे से होती है। जिस का ज़िकर अल्लाह तलाह ने कुरआन-ए मजीद के सूरेह हदीद में कर दिया है। इंसानी ज़िंदगी चंद रोज़ की ज़िंदगी है जो सिर्फ कुछ दिनों तक ही रहेगी। आज तक ऐसा कोई नहीं आया जिस ने मौत का मज़ा न चखा हो। अल्लाह तलाह ने पुरे कुरआन-ए मजीद में तीन जगा फरमा दिया के हर जीवन पाने वाले को मौत का मज़ा चखना है। मौत बरहक़ /CONFORM है। इसे दुन्या की किसी भी ताकत से टाला नहीं जा सकता। मौत सच्ची हकीकत है। दुन्या में आने वाले इंसान को अपना नाम ,मकान और लिबास शानदार करने की फ़िक्र होती है। लेकिन मौत के बाद सिर्फ अमले-सलिहा और अल्लाह की राजा ही काम आ सकती है। आख़िरत में नेकी का इनाम और गुनाहों का बदला  मिलता है। ज़िंदगी और मौत के दरमियाँ/BETWEEN सिर्फ दो फर्क है।  दुनयावी ज़िंदगी झूटी हकीकत और आख़िरत की ज़िंदगी सच्ची है।  दुनयावी ज़िंदगी LIMITED /महदूद और फानी /ख़तम

CHICKEN DONUTS

                                         INGREDIENTS POTATO [1 KG] BOILED MINT AS YOUR WISH 1 ONION 5 GREEN CHILI 2 EGGS  MAIDA /ALL PURPOSE FLOUR [6 TBPS] CORN FLOUR  [4 TBPS] RED CHILI FLAKES [1 TBPS] GINGER GARLIC PASTE [1 TBPS] GARAM MASALA [1 TPS] SALT ON YOUR TASTE  OIL [FOR FRYING] TURMERIC [1/2TPS] BRED CRUMB                                            METHOD BLEND ALL INGREDIENTS WITH OUT EGG AND BRED CRUMB MAKE A DONUTS SHAPE WITH A DOUG AND MAKE A HOLE IN CENTER DIP A RAW DONUTS INTO EGG BATTER  ROLL IN BRED CRUMB AND FRY IT. IN MEDIUM FLAME OF GAS AND SERVED IT WITH GRATE CHEESE AND TOMATO SAUCE

MAA KI MOHABBAT

एक गांव में एक गरीब लड़का अपनी बूढी माँ के साथ रहता था लड़के के बाप का इंतेक़ाल /DEATH इस वक्त हो गया था जब लड़का 11 बरस का था  लड़के के बाप के इंतेक़ाल को अब 9 बरस हो चुके थे इस लड़के का नाम वाजिद था वाजिद के घर में बोहत गरीबी थी वोह सुबहा शाम कड़ी मेहनत कर के अपना और अपनी बूढी माँ का पेट पलटा था  इस गांव का बादशा बोहत ज़ालिम और बे-रेहेम था इस बादशा की पांच बेटियाँ थी उन्हें भी अपने ऊपर घमंड था वाजिद को बादशा की पांच बेटियों में से एक बेटी पसंद आ गई वह सेहज़ादी की मोहब्बत में गिरफ्तार हो गया बादशा यह नहीं चाहता था के वाजिद की शादी सेहज़ादी से हो क्यूँ-ना-के वाजिद गरीब और सेहज़ादी एक सेहेंशा की बेटी वाजिद जब बादशा से इल्तेजा करने लगा तो बादशा तंग आ गया और वाजिद का सर कलम करने का हुकुम दिया इसी वकत सेहज़ादी ने शर्त राखी के अगर तुम अपनी माँ का कलेजा निकाल ले आओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूँ सेहज़ादी वाजिद का इम्तेहान /TEST ले रही थी वाजिद घर गया और अपनी माँ को मार कर उस का कलेजा निकल कर के सेहज़ादी को देने निकला और मेहेल पोहंचा तो सेहज़ादी देख कर दांग रह गई और ज़ोर से बोली चले जाओ यहाँ से जो इंसान

INTELLIGENT SON

  पुराने ज़माने की बात है किसी गाओं में एक ज़मीन-दार रहता था वह बोहत नेक और अकल्मन्द था इस का एक बेटा भी बोहत अकल्मन्द था। इस के अलावा ज़मीन-दर के दो और बेटे थे। एक दिन वह सोच रहा था की तीनो बेटों में से किस को अपना वारिस बनाए ,इसे एक तरकीब /IDEA आया।    ज़मीन-दर ने अपने तीनो बेटों का इम्तेहान /TEST लेने के लिए तीनो को एक-एक रुपए दिया और कहा जाओ इस से अपने लिए खाना और मुरगी/CHICKEN  के लिए दाना और बकरी /GOAT के लिए चारा ले आना। तीनो भाई एक-एक रुपए ले कर बाजार गए लेकिन इन के लिए मुश्किल यह थी के एक रुपए में अगर बकरी के लिए खाना और मुरगी के लिए दाना ले लेते तो कुध भूके रेह जाते।   बड़े और मंजले भाई की समझ में येह नहीं आया के क्या करें आखिर उन्हों ने पेट भर कर खाना खा लिया और बकरी और मुर्गी के लिए कुछ नहीं लिया। खा-पि कर दोनों घर आ गए बाप ने बेटों को खाली हाँथ देखा तो पूछा तुम ने एक रुपए का क्या किया ? दोनों ने एक ही जवाब दिया एक रुपए में हम ने बड़ी मुश्कील से पेट भर कर खाना खाया इस लिए हम मुरगी और बकरी के लिए कुछ नहीं ला पाए।  कुछ देर बाद तीसरा और सब से छोटा भाई वापस आया।  बाप ने इस से पूछा त

BULAND DARWAZA

  UP के जिला आगरा/AGRA में फ़तेह-पुर सेकरि /FATEHPUR SIKRI नामी मक़ाम पर 1576 में अकबर ने [''बुलंद बरवाज़ा ''] नाम से एक अज़ीम बुलंद दरवाज़े की तामीर/BUILT कराइ। इस की तामीर गुजरात की फ़तेह की ख़ुशी में की गई। यह दुन्या का सब से बड़ा दरवाज़ा होने के साथ-साथ MUGHAL ARCHITECTURE की ज़िंदा मिसाल है। अकबर-ए आज़म ने बेटे सेहज़ादे सलीम के जनम के लिए यहीं दुआ की थी। यहाँ मशहूर बुज़ुर्ग सलीम चिस्ती रेहमतु-लाह अलेह की मज़ार है। उन्ही के नाम पर सेहज़ादे का नाम सलीम रखा गया। बुलंद दरवाज़ा मज़ार के करीब ही बना हुआ है। इस दरवाज़े की ऊंचाई/HEIGHT ज़मीन से 54 मीटर्स/MITERS है। जो के लग-भग 15 मंज़िला ईमारत के बराबर ऊँचा है। लगातार बारह /12 सालों की शदीद मेहनत के बाद इस की तामीर मुक़मल /COMPLETE हुई। 

JOKES ONLY FOR ENTERTAINMENT

एक बोहत मोटा आदमी था। हमेसा लोग उसे सताते रहते थे। वह उन से पीछा छुड़ाने की बोहत कोशिस करता था। एक बार इस ने रेल /TRAIN की पटरी पर सो कर खुद-खुशी करने की कोशिस की। लेकिन उसे किसी आदमी ने बचा लिया। एक बार उस ने बोहत ऊँची ईमारत से छलांग लगा दी। जब उस की आँख खुली तो वह अस्पताल/HOSPITAL में था। उस ने नर्स /SISTER से पूछा। मैं कैसे बच गया। तो नर्स ने कहा तुम तो बच गए। लेकिन जिन तीन लोगों पे तुम गिरे थे वोह मर गए। 

INTELLIGENT FARMER

   पुराने ज़माने में भारत में एक राजा राज करता था। वह बोहत रेहेम दिल था। इस के राज में सब खुश थे। राजा अपनी प्रजा की हालत देखने के लिए कभी-कभी मेहेल से बहार निकला करता था। सब लोग राजा की इज़त करते थे। एक दिन राजा घुमने गया। रस्ते में उसे एक किसान दिखा। किसान अपने खेत पे काम कर रहा था। राजा इस के खेत पर गया। इस खेत में किसान ने गेहूं /WHEAT बो रखे थे। खेत बोहत हरा-भरा था। राजा खेत देख कर बोहत खुश हुआ।इस ने किसान से जा कर पूछा ''तुम इस खेत से कितना कमा लेते हो ?''    किसान ने जवाब दिया ''हुज़ूर बस यह समझ लिजिए एक /1 रुपए रोज के हिसाब से पड़ जाता है ''    ''अच्छा एक रूपए रोज। तो फ़िर तुम इस एक रुपए का क्या करते हो ?''राजा ने पूछा         ''जी इस एक रुपए में चार आने तो रोज खा लेता हूँ। चार आने का क़र्ज़ उतारता हूँ और चार आने क़र्ज़ देता हूँ। अब बाकि बचे चार आने तो उन्हें कुंआ में फेंक देता हूँ। ''      राजा किसान की बात सुन कर हैरान हुआ ,इस से पूछा ''मैं तुम्हारी बात का मत्लब नहीं समझा। मुझे इस का मतलब समझाओ ''किसान ने