PYARE NABI KI SADGI/SIMPLICITY PART 1

 


हज़रात अनस इब्ने मालिक र . अ फरमाते है के रसूल अल्लाह [सलाह-अलैहे-वसलम ]बीमारों से हमेशा मिलते थे ,जनाज़े में शरीक होते थे ,गधे पर सवारी करते थे और गुलामों की दावत कुबूल करते थे। पैगम्बर/नबी का  मक़ाम खुदा के बाद है दुन्या की बुलंद-तरीन शख्सियत /PERSONALITY होने के बावजू नबी करीम एक आम आदमी की तरह रहते थे। नबी करीम दिखावे की ज़िंदगी से बिलकुल दूर रहते थे और इस का साबुत आप अपने अमाल से दिया करते थे। चुनांचा आप बीमारों से मुलाकात करते और उन को तसल्ली दिया करते थे के आप अच्छे हो जाएंगे उन की सेहत-याबी की दुआ करते थे इस से मरीज़ को अच्छा महसूस होता था। आज यह चीज़ ख़तम हो गई है। दिखावे ने ऐसा घेर रखा है के रिश्तेदारी और तालुकात के क्या हुकूक हैं इन पर अमल करने का वकत ही नहीं है आज के लोगों के पास। जहाँ अपना फाएदा हो वहां हर कोई खड़ा होता है। जहाँ फ़ायदा ना हो वहां कोई भी नबी की सुनत पर अमल नहीं करता। 
इसी तरह आप जनाज़े में भी शामिल हुआ करते थे। मरने वाला छोटा हो या बड़ा ,अमीर हो या गरीब आप जनाज़े में ज़रूर शामिल होते थे। आज यह सुनत भी ख़तम होती जा रही है। आप ने बार-बार जनाज़े में और कब्रिस्तान जाने को कहा है ता के हमें यह याद रहे की हर किसी को यहाँ आना है। अल्लाह के बोहत से मकबूल बन्दे कूदा की नज़र में बोहत एहमियत/IMPORTANCE रखते है। इन की दुआओं से मरने वाले या किसी का भी बेडा पार हो सकता है। 


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आगे का पार्ट  2 में 

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