Hazrat muhammad [s.a.w]
अल्लाह ताला ने दुन्या में कई व्यक्तित्व/शख्सियतें पैदा की हैं। मगर दुन्या में एक सब से अज़ीम शख्सियत ऐसी है जो सभियों पर बेहतर है और इन से इस ज़मीन की हर शेह वाकिफ है। वह पाक ज़ात हज़रत मुहम्मद मुस्तफाﷺ की है। जो तमाम नबियों में सब से आखरी नबी हैं।
हज़रत मुहम्मद मुस्तफाﷺ की विलादत 12 रबी-उल-अव्वल को मक्का में हुई थी। हज़रत बीबी अमीना से रिवायत है के इन की पैदाइश से 2 माह पहले इन के वालिद मजीद हज़रत अब्दुल्लाह का इन्तेकाल हो गया। जब आपﷺ की उम्र 6/ साल की हुई तो आपﷺ की वालीदह मजीदह हज़रत बीबी अमीना का भी इन्तेकाल हो गया। फिर आपﷺ के दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने आपﷺ की परवरिश की। 2 साल बाद आपﷺ के दादा का भी इन्तेकाल हो गया।
गरज़ ये के आपﷺ बच्पन ही में यतीम हो गए। आपﷺ के सर से वालिदैन का साया बहोत जल्द ऊठ गया। आपﷺ को दाई हलीमा सदया ने दूध पिलाया। जब आपﷺ की उम्र 25/ साल की थी इस वक़्त आप का निकाह हज़रत खदीजा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] से हुआ। 40/ साल की उम्र में आपﷺ को गारे हिरा में नबूअत अता की गई।
आपﷺ ने एक बार फ़रमाया अल्लाह ताला ने मुझे इस वक़्त बनाया जिस वक़्त हज़रत आदम अलेह सलाम मिटटी और पानी के दरमियान थे। आपﷺ ने कई हदीसें भी अता फ़रमाई।
अल्लाह ताला ने दुन्या में आपﷺ को 'नबी रेहमत' बना कर भेजा। आप रेहमतुलील आलमीन हैं यानि तमाम जहानों के लिए रेहमत। हज़रत मुहम्मद मुस्तफाﷺ की विलादत ऐसे दौर में हुई जब दुन्या के हर हिस्से में बुराइयाँ उरूज [अपने चार्म सिमा पर] थीं। समाज में औरतों पर बे-इन्तेहा ज़ुल्म किये जाते थे। एहले अरब में अगर किसी के घर लड़की पैदा हो जाती तो इसे बे-इज़ती समझा जाता था। ज़िलत और बे-इज़ती से बच्ने के लिए बे-रेहम बाप अपनी मासूम बेटी को ज़िन्दा दफ़न कर देता।
एक ऐसे वक़्त जब के दुन्या भर में औरत के वजूद को ज़िलत और बे-इज़ती समझा जाता था, नबी-इ रेहमत ﷺ ने औरत को इज़त से नवाज़ा और इंसानियत को इस बात का दरस/इलम दिया के औरत का वजूद अल्लाह की नेमत है। माँ का ऐसा मुकदस मक़ाम है के अल्लाह ताला ने माँ के क़दमों के निचे जन्नत को रख दिया है। एक शोहर के लिए नेक बीवी दुन्या का सबसे बड़ा खज़ाना है और बेटी बाप की आँखों की ठंडक है, जन्नत में दाखिले का वसीला है। नबी करीमﷺ ने औरतों के साथ अच्छे सलूक की ताकीद फ़रमाई है। आपﷺ ने औरत को इज़त के ऐसे आला मरातिब अता किए के दुन्या की तारीख में इस की नज़ीर नहीं मिलती।
कुरआन मुकदस और अहादीस मुबारका में कई मक़ामात पर औरतों के हुकूक और इन के मर्तबे से मुतालिक एहकामात मौजूद हैं। हुज़ूर अकरमﷺ ने अपनी मुबारक ज़िन्दगी में अपने अमल के ज़रिए सारि इंसानियत को ख़वातीन के साथ अच्छा सलूक करने की तालीम दी। एक बार हुज़ूर अकरमﷺ ने अपनी वालीदह मोहतरम हज़रत सैयदा अमीना [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] का तज़किरा करते हुए फ़रमाया के अगर आज मेरी माँ ज़िन्दा होतीं और मैं नमाज़ पढ़ रहा होता और वोह मुझे आवाज़ देतीं तो मैं नमाज़ छोड़ कर अपनी माँ की खिदमत के लिए हाज़िर हो जाता।
एक और हदीस पाक से मालूम होता है जब किसी शक्श/आदमी ने आपﷺ से सवाल किया के ''मेरे हुस्न-व-सुलूक का सब से ज़यादा मुस्तहिक़ कौन है?'' तो आपﷺ ने जवाब दिया ''तेरी माँ''। लगातार तीन मर्तबा सवाल करने पर आपﷺ ने यही जवाब दिया और चोहती मर्तबा फ़रमाया तेरा बाप। मालूम हुआ के माँ के साथ बाप की निस्बत तीन गुना ज़्यादा हुस्न-व-सुलूक का हाकिम है।
अज़वाज मुताहरत के साथ भी आप का बरताओ मिसालि है। कई रिवायात से मालूम होता है के आपﷺ घर के काम काज में अपनी बीवियों का हाँथ बटाते, आप आटा गुंदते, अपने जूते खुद सी लिया करते, बकरी का दूध धोते और इसी तरह दूसरे कामों में भी हाँथ बटाया करते थे। मन्क़ूल है के जब हज़रत सैयदा खदीजा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] की वफ़ात का वक़्त करीब आया तो आप ने हज़रत सैयदा फातिमा से हुज़ूर अकरमﷺ की चादर मंगवाई। आपﷺ ने जब वापस हुए और चादर मंगवाने की वजह दरयाफ्त फ़रमाई तो हज़रत सैयदा खदीजा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] ने कहा मेरी वफ़ात का वक़्त करीब है और मैं चाहती हूँ के मुझे आप की चादर में कफनाया जाए। ये सुन कर आपﷺ ने फ़रमाया ऐ खदीजा अगर तुम चादर की जगहा मेरी जिल्द भी मांग लेती तो मैं दे देता। अज़वाज मुताहरत के साथ मोहब्बत के पाकीज़ा बर्ताव का अंदाज़ा इस बात से भी होता है के हज़रत आइशा सिद्दीका [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] जिस बर्तन से मूँ लगा कर पानी नोश फ़रमातीं इसी बर्तन में उसी जगह से आपﷺ भी अपने लब मुबारक लगा कर पानी नोश फरमाते। मोहब्बत के पाकीज़ा बर्ताव के ऐसी कई मिसालें पेश कर के आपﷺ ने दुन्या के तमाम इंसानों को अपनी अपनी बीवियों के साथ मोहब्बत से पेश आने का तरीका बता दिया।
एक बार नबी करीमﷺ से बीवियों के हुकूक से मुतालिक पूछा गया तो आपﷺ ने इरशाद फ़रमाया: जो तुम खाओ वही उन को खिलाओ, इन के चेहरे पर मत मारो और उन को बुरा भला मत कहो, न ही इन से जुदाई इख़्तियार करो अगर ऐसा मौका आ भी जाए तो इसी घर में समझ बुझ के साथ गुज़ारा करो। [अबू-दाऊद]
इस्लाम में बेहनों के भी हुकूक को ताकीद के साथ बयान किया गया है। ग़ज़वा-ए-हिंद के बाद जो लोग कैद कर लिए गए थे इन में आपﷺ की रजाइ बेहेन भी शामिल थीं। इन्हों ने आपﷺ से मुलाकात की ख्वाहिश की और जब करीब हुईं तो कहा ''ए अल्लाह के नबीﷺ, मैं सिमा हूँ, आप की रजाइ बेहेन। अबु-कबशा और हलीमा सदया बिन्ते ज़ोहेब की बेटी।'' नबी करीमﷺ ने उन्हें खुश आमदीद कहा और अपनी चादर उन के लिए बिछदी और फ़रमाया के आ कर इस चादर पर बेठ जाओ। इन्होंने आपﷺ के बच्पन के वाक्यात सुनाए जिस पर आपﷺ की आँखे नम हो गईं। हुज़ूर अकरमﷺ ने इन को साथ रहने की ख्वाहिश की लेकिन हज़रत सिमा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] ने अपने कबीले में वापस जाने की इजाज़त मांगी। हुज़ूरﷺ ने इन्हें एक लोंडी, चंद ऊंट और बकरियाँ बतौर तोहफा दीं और वह बखुशी अपने कबीले की तरफ लौट गईं। आपﷺ ने औरत को न-सिर्फ माषरे में बुलंद मुकाम अता किया बल्कि औरत के वजूद को खेर-व-बरकत का बाइस और रेहमत का ज़रया करार दिया।
बेटियां अल्लाह की रेहमत होती हैं। नबी करीमﷺ ने बेटियों की परवरिश पर जितनी बशर्तें दी हैं, बेटे की परवरिश पर इस कदर बयान नहीं फ़रमाया। हज़रत अबु-सईद खदरी [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] से रिवायत है के नबी अकरमﷺ ने इरशाद फ़रमाया : जिस शक्श/आदमी की तीन बेटियाँ या तीन बेहने हों, या दो बेटियाँ या दो बेहने हों, और वह उन के साथ अच्छा बर्ताव करे और इन के हुकूक की अदाएगी के सिलसिले में अल्लाह ताला से डरता रहे तो अल्लाह ताला इस की बदौलत इस को जन्नत में दाखिल फरमाए गा। किसी ने सवाल किया के अगर किसी की एक बेटी हो तो ? आपﷺ ने रशाद फ़रमाया : जो शक्श/आदमी एक बेटी की इसी तरह परवरिश करे गा , इस के लिए भी जन्नत है।
हुज़ूर अकरमﷺ की सेहज़ादी हज़रत सैयदा फातिमा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] से मोहब्बत का अंदाज़ा इस बात से होता है के हुज़ूर अकरमﷺ जब सफर का इरादा फरमाते तो अपने ऐहल-व-अइयाल में सब के बाद जिस से गुफ्तगू फरमा कर सफर पर रवाना होते वह हज़रत सैयदा फातिमा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] होतीं और सफर से वापसी पर सब से पहले जिस के पास तशरीफ़ लाते वह भी हज़रत सैयदा फातिमा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] होतीं। हज़रत अब्दुल्लाह बिन-जुबेर फरमाते हैं के रसूल अकरमﷺ ने फ़रमाया फातिमा [राज़ी-अल्ल्ह-ताला-अन्हा] मेरी जान का हिसा है, इसे तकलीफ देने वाली चीज़ मुझे तकलीफ देती है।
अल्लाह के प्यारे नबीﷺ ने औरत के साथ रेहम-व-करम का मामला फ़रमाया इस पर बोझ डालने से मना फ़रमाया और इस पर बे-जा सख्ती से रोका और हर लिहाज़ से इन के हुकूक की अदाएगी की तालीम/शिक्षा दी।
आपﷺ ने ये भी बताया माँ के क़दमों तले जन्नत है और बाप जन्नत का दरवाज़ा है। आपﷺ ने भूले भटकों को राह दिखाई। आपﷺ बड़ों के साथ नरमी और सफ़कत से बात करते और छोटों से मोहब्बत करते और उन्हें अपनी गोद में ले कर प्यार करते। इन के सरों पर प्यार से अपना दस्त-ए मुबारक फेरते। अगर कोई बीमार हो जाता तो इस को तसल्ली देते और फरमाते के अल्लाह ताला तुम्हें जल्द शिफा-याब करे।
नबीﷺ ने आखरी दम तक अपनी उमत के लिए रो रो कर दुआएँ मांगी उन्हों ने अपनी उमत में से मरदों से ज़यादा औरतों की मगफिरत की दुआ मांगी क्यू के मेराज के वक़्त आपﷺ ने अपनी उमत की औरतों पर जो अज़ाब होते हुए देखा वो ना-काबिले बयान है। बीबी अमीना से रिवायत है के जब आपﷺ इस दुन्या में तशरीफ़ लाए तो आपﷺ के हॉट/लब मुबारक हिल रहे थे जैसे वह कुछ बोल रहे हों। बीबी अमीना जब अपने कान आपﷺ के करीब ले गईं तो इस वक़्त आपﷺ इरशाद फरमा रहे थे के ''रबे हब्ली उमति'' यानि ऐ अल्लाह मेरी उमत को बक्शह दे इस वाक़ए से हम ये अंदाज़ा लगा सकते हैं के हुज़ूरﷺ अपनी उमत से किस-कदर मोहब्बत करते हैं।
रसूल अकरमﷺ ने 63/साल की उम्र में इस दुन्या से पर्दा फ़रमाया। अपनी उमत के लिए आपﷺ ने दिन रात रो रो कर दुआएँ मांगी।
हमारी अल्लाह ताला से यही दुआ है के हम हुज़ूरﷺ की सुनातों पर उमल करने वाले बनें।
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