HAZRAT MIAN MIR.R.A
हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे मुग़ल बादशहों के ज़माने में एक बोहत बड़े वली अल्लाह हो गुज़रे हैं। आम लोगों के अलावा बड़े बड़े अमीर भी इन के मुरीद थे। शहेंशा जहाँगीर और शाजहाँ के बड़े बेटे शेहजदा दारुलशकु ने अपनी एक किताब में हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे के हालात लिखे हैं और उन की कई करामातें बयान की हैं। इन का मज़ार पाकिस्तान के लाहौर/lahore में हैं जहाँ हर साल बड़ी धूम-धाम से उन का उर्स मनाया जाता है। शाजहाँ के दौर में हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे जैसा और कोई बुज़ुर्ग नहीं था। बे-शुमार लोग अपनी मुश्किलें हल कराने के लिए उन की खिदमत में हाज़िर होते थे।
एक मर्तबा एक मुग़ल हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे की खिदमत में आया। वह नंगे सर और नंगे पाओ/पैर था और इस के बदन पर भी एक धोती के सिवा कोई कपडा न था। इतने में एक आदमी ने हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे की खिदमत में हाज़िर हो कर कुछ रकम/रुपए नज़र के तोर पर पेश की। आम तोर पर /NORMALLY हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे लोगों के नज़राने कुबूल नहीं करते थे मगर उस रोज़ रकम कुबूल कर ली।
इस वक़्त हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे के पास कई दरवेश बैठे हुए थे, मगर उन्हों ने वह रकम दरवेशों में तकसीम/DISTRIBUTE नहीं की बल्की उस मुग़ल को सारि रकम दे दी और फ़रमाया ''इस से घोडा खरीद कर फलां शेहजादे के पास चले जाओ। तुम्हें नौकरी मिल जाए गी। ''
मुग़ल रकम ले कर चला गया तो एक दरवेश को इस बात का बड़ा दुःख हुआ के हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे ने सारि रकम उस मुग़ल को दे दी। वह कहने लगा ''ये कहाँ का इंसाफ है के सारि रकम एक ही आदमी को दे दी जाए। यहाँ और दरवेश भी तो बैठे हैं। हम सब इस के हकदार थे। ''
ये केह कर वह चला गया इस के जाने के बाद हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे ने फ़रमाया :''देखो, ये आदमी ऊपर से दरवेश बना फिरता है और अंदर से कितना लालची है। इस की कमर में एक थैली बंधी है जिस में एक सो बाईस रुपए आठ आने हैं और ये कम्बखत फिर भी अपने आप को उस रकम का हकदार कहता है जो मैं ने उस मुग़ल को दी है। देख लेना ये लालची दरवेश अपना रूपया खो बैठे गा और इस रुपए के गम में इस की जान चली जाए गी। ''
वह दरवेश हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे के पास से उठ कर नहाने के लिए एक गुसल खाने में गया। जब नहाने के लिए कपडे उतारे तो थैली भी कमर से खोल कर एक तरफ रख दी। जब नहा कर निकला तो थैली वहीँ गुसल खाने में भूल गया। थैली किसी और आदमी के हाँथ लगी और वह उस थैली को ले कर चलता बना।
कुछ देर बाद जब उसे अपनी थैली का खयाल आया तो भागा-भागा वापस आया और जब थैली वहाँ ना मिली तो रोता पटता हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे की खिदमत में हाज़िर हुआ। हज़रत मियाँ मीर रेहमतुल्लाह अलैहे ने उस की दास्ताँ सुन कर कहा। ''मियाँ, तुम्हारी थैली एक दरवेश के पास है जो कश्ती/BOAT में बैठा दर्या की सैर कर रहा है। जाओ इस से अपनी थैली ले लो।''
लालची दरवेश भागा भागा दर्या पर पोहंचा। देखा के एक कश्ती किनारे की तरफ आ रही है। अभी इस ने अपनी ज़बान से कुछ ना कहा था के कश्ती किनारे पर आ गई। इस में बैठा हुआ आदमी कश्ती से बाहर आया। एक थैली इस के हाँथ में थी जो इस ने चुप-चाप इस लालची दरवेश के हाँथ में दे दी और खुद वापस कश्ती में जा बैठा। लालची दरवेश ने थैली ले कर घर का रास्ता लिया।
लालची दरवेश को थैली तो वापस मिल गई मगर थैली के ग़ुम हो जाने से इस के दिल को जो सदमा हुआ था, वोह इसी तरहा रहा। वह बीमार हो गया और कुछ ही दिनों में इस दुन्या से चल बसा।
लालची दरवेश के मरने के बाद थैली की रकम इस के दो खादिम/गुलाम/SERVANTS आपस में बाटने लगे। जब तीसरे खादिम ने देखा के मुझे इस थैली की रकम में से कोई हिसा नहीं मिल रहा तो इस तीसरे खादिम ने उन दोनों के खाने में ज़हर मिला दिया। वह दोनों खादिम ज़हरीला खाना खाने की वजह से मर गए मगर वह तीसरा खादिम भी उन्हें ज़हर देने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया और इसे फांसी की सजा हुई।
अब लालची दरवेश की रकम की थैली का कोई मालिक ना था इस लिए वोह रकम शाही ख़ज़ाने में जमा कर दी गई और इस तरहा लालची दरवेश का माल इस के और इस के खादिमों के किसी काम ना आया।

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