HAZRAT USMAN GANI.R.A

 


हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा मुसलमानों के तीसरे खलीफा थे। हज़रत उस्मान गनी के वालिद का नाम अफान था। हज़रत उस्मान गनी अपने ज़माने के उन चंद लोगों में से थे जो लिखना पड़ना जानते थे। उन्हों ने बच्पन में ऊँट भी चराए जो अरबियों में भोत ज़रूरी समझा जाता था। आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा हज़रत अबूबकर सिद्दीक राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा की दावत पर इस्लाम लाए। 
इस्लाम कबूल करने के बाद हज़रत उस्मान पर उन के अपने ही रिश्ते दार ज़ुल्म करने लगे। वोह उन्हें किसी तरहा भी चैन नहीं लेने देते। यह देख कर नबी करीम ﷺ उन्हें चंद दूसरे मुसलमानों के साथ हब्शा की तरफ हिजरत/सफर की इजाज़त दी। 
हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा को तीन फ़ज़िलतें हासिल थीं। एक फ़ज़ीलत तो येह थी के रसूल अल्लाह ﷺने अपनी दो साहब जादियों /बेटियों का निकाह उन किया। दूसरी फ़ज़ीलत ये के उन्हों ने दीन के खातिर दो बार हिजरत /सफर किया। पहली हब्शा की तरफ और दूसरी मदीना मुनौवरा की जानिब। तीसरी फ़ज़ीलत ये है के आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा ने कुरान-ए-मजीद लिख्वा कर उस की नकलें मुसलमानों की सारि आबादियों में भेजवादी। उसी कुरान-ए-मजीद की नकलें आज सारि दुन्या में मौजूद है। आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा को इसी लिए ''जामा-अल-कुरान /جامع القرآن'' भी कहते हैं। 
हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा इस्लाम कुबूल करने से पहले भी जहालत के तौर-तरीकों को ना-पसंद करते थे। अरब में उस वक़्त जुआ और शराब आम /NORMAL थी मगर आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा कभी किसी बुराई के करीब तक नहीं गए। आप को हर किस्म बुराइओं से सख्त नफरत करते थे। आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा शर्म-व-हया के पुतले थे। 
आप बोहत दौलत मंद और बोहत सखी /दान करने वाले इंसान थे। आप की गिनती मके के अमीर लोगों में होती थी। मगर आप ने कभी अपनी दौलत पर फकर नहीं किया। बल्कि बड़ी सखावत और बड़े दिल से सब को चाहे वह अमीर हो ये गरीब सब को फाएदा पोहंचाया। आप ने अपनी सारि दौलत मुस्लमानों के लिए वक्फ/निछावर कर दी थी। मदीने के शुमाल/NORTH में मीठे पानी का एक कुआँ था जिस का मालिक एक यहूदी था। वह पानी बोहत मेहंगे दाम में बेचता था। मुस्लमानों को पानी की सख्त तकलीफ थी। क्यू के उस ज़माने में यहूदी पैसे वाले थे वोह तो मीठा पानी खरीद लेते थे। मगर गरीब मुस्लमान इस पानी से मेहरूम रहते थे। मुस्लमानों की ये तकलीफ देख कर हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा ने वोह कुआँ यहूदी को मुँह मांगी रकम दे कर खरीद लिया। 
हज़रत अबूबकर सिद्दीक राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा के ज़माने में एक बार सख्त सूखा/कहत पड़ा। उन्ही दिनों हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा का एक तिजारती काफिला गेहूं/WHEAT से लदे हुए एक हज़ार ऊंट ले कर आया। मदीने के ताजिरों ने बड़े फाएदे पर गेहूं/WHEAT खरीदना चाहा। मगर हज़रत उस्मान गनी ने तमाम गेहूं/WHEAT लोगों में मुफ्त तकसीम/बटवा दिया।
हज़रत उस्मान गनी जिहाद के मौके पर भी मुसलमानों की हर तरहा की मदद करते थे। एक मर्तबा/बार तो पुरे लष्कर के लिए ज़रूरत की हर चीज़ अपनी तरफ से दी /मोहैया की। अपने खिलाफत के ज़माने में हर साल हज को जाते तो मिना के मक़ाम /जगह पर जब तक तमाम हाजियों को खाना न खिला लेते, अपने खेमे में न जाते। यह सारा खर्च वह अपनी जेब करते। 
इतनी दौलत होने के बा-वजूद हज़रत उस्मान गनी राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा के मिज़ाज में बड़ी सादगी थी। अगर मेहमान आ जाते तो उन्हें उम्दा से उम्दा खाना खिलाते और खुद सेहद /HONEY और जैतून के तेल पर गुज़ारा कर लेते। आप राज़ी अल्लाह ताला -अन्हा सादा लिबास/कपडे पेहेनते, चटाई पर सोते,  अल्लाह की राह में खर्च कर के बे-हद खुश होते। 

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