सिक्कों की खनक
एक बार मुल्ला नसरूद्दीन किसी शहर के व्यस्त इलाके से गुजर रहे थे। उन्हों ने देखा की एक भिखारी को लोगों ने घेर रखा है। कबाब की दुकान के मालिक के सामने वह भिखारी घुटने टेके, आँसुओं में डूबा, गिड़गिड़ा रहा है।
जिज्ञासु मुल्ला ने उस अमीर आदमी के पास जाकर कहा,''क्षमा करें श्रीमान् ! क्या किया है इसने ?'' वस्तुत: अमीर व्यक्ति भिखारी को मुर्ख बना रहा था। उसने सोचा मुल्ला को अपनी ओर मिला लेते हैं और मजा आ जायेगा। वह बोला,''इस भिखारी ने मुझसे मेरे चूल्हे पर रोटी सेंकने की इजाजत मांगी। मैनें दे दी ! पर इसने चूल्हे पर रोटी सेंकने की जगह मेरे तवे पर रोटी सेंकी। उस तवे पर कबाब बनाने के बाद बचा हुआ तेल था। अर्थात् उसकी रोटी में मेरे कबाबा की खुशबू चली गई। अब में अपने तेल और खुशबू के पैसे माँग रहा हूँ, तो क्या मैं सही नहीं हूँ?''
मुल्ला ने भिखारी और भीड़ पर नजर डालकर भिखारी से पूछा,''क्यों श्रीमान् ! क्या आप नहीं जानते हैं की दूसरों की वस्तु लेने पर उन्हें पैसा देना पड़ता हैं ?''
हैरान परेशान भिखारी चुपचाप जितने भी पैसे जेब में थे निकाले और देने लगा। तुरंत मुल्ला नसरूद्दीन बोल पड़े,''लाइए, मैं उन्हें ये सिक्के देता हूँ।'' ये कहकर मुल्ला ने सिक्के लेकर अमीर आदमी से कहा,''श्रीमान् ! जरा अपना कान तो पास लाइए...।''
परेशान अमीर व्यक्ति मुल्ला की ओर झुका। मुल्ला ने उसके कान के पास ले जाकर सिक्कों को जोर से खनखनाया और पूछा,''श्रीमान् ! आवाज कैसी लगी?''
''बहुत अच्छी, अब जरा हांथ में लेकर देखूं...'' अमीर व्यक्ति ने कहा।
मुल्ला ने वापस सारे सिक्के भिखारी की जेब में डालकर कहा,''श्रीमान् ! भिखारी ने मात्र कबाब की खुशबु ली, कबाब खाया नहीं। आपने भी सिक्कों की खनखनाहट सुन ली।''
इससे अमीर व्यक्ति भिखारी को लूट न सका और सिर झुकाकर चुपचाप अपनी दुकान में चला गया।
Comments
Post a Comment
If you have any question or doubt, please let me know